इन प्रसंगों द्वारा चारणों की प्राचीनता उनका कार्य तथा उनका सम्मान और पवित्र कर्तव्य स्पष्ट होता है। कर्नल टाड ने लिखा है : इन क्षेत्रों में चारण मान्य जाति के रूप में प्रतिष्ठित हैं। 1901 के जनगणना विवरण में कैप्टन बेनरमेन ने चारणों के लिये लिखा है : चारण पवित्र और बहुत पुरानी जाति मानी जाती है। इसका वर्णन रामायण और महाभारत में है। ये राजपूतों के कवि हैं। ये अपनी उत्पत्ति देवताओं से होने का दावा करते हैं। राजपूत इनसे सदैव सम्मानपूर्वक व्यवहार करते हैं। ये बड़े विश्वासपात्र समझे जाते हैं। इनका दर्जा ऊँचा है। ये अक्सर बारहट के नाम से पुकारे जाते हैं।
मारवाड़ में रहनेवाले चारण मा डिग्री तथा कच्छ के काछेला कहलाते हैं। गुजरात के चारणों ने तो अब अपना चारणपन छोड़ दिया है पर अभी मा डिग्री चारण यथावत् हैं। उपर्युक्त उद्धरणों के अनुसार चारण जाति देवता जाति थी, पवित्र थी, जिसको सुमेर से हिमालय पर और हिमालय से भारत में लाने का श्रेय महाराज पृथु को है। यहीं से ये सब राजाओं के यहाँ फैल गए। चारण भारत में पृथु के समय से ही प्रतिष्ठित रहे हैं। परंतु आधुनिक विद्वान् इसे सत्य नहीं मानते।
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