भाट चारण के समान (भाट संस्कृत 'भट्ट' से व्युत्पन्न शब्द) भी काव्यरचना से संबंधित हैं लेकिन इनके विषय में निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। भाट शब्द भी भाट जाति का अवबोधक है। राजस्थान में चारणों की भाँति भाटों की जातियाँ है। उत्तर प्रदेश में भी इनकी श्रेणियाँ हैं, लेकिन थोड़े बहुत ये समस्त उत्तर भारत में पाए जाते हैं। दक्षिण में अधिक से अधिक हैदराबाद तक इनकी स्थिति है। इनके वंश का मूलोद्गम क्या रहा होगा, यह कहना कठिन है। जनश्रुतियों में भाटों के संबंध में कई प्रचलित बातें कही जाती हैं। इनकी उत्पत्ति क्षत्रिय पिता और विधवा ब्राह्मणी माता से हुई बताई जाती है। नेस्फील्ड के अनुसार ये पतित ब्राह्मण थे, बहुधा राजदरबारों में रहते, रणभूमि के वीरों की शौर्यगाथा जनता को सुनाते और उनका वंशानुचरित बखानते थे। किंतु रिजले का इससे विरोध है। पर इन बातों द्वारा सही निर्णय पर पहुँचना कठिन है। वस्तुत: यह एक याचकवर्ग है जो दान लेता था।
विद्वानों की मान्यता है कि भाट लोग भी चारणों की भाँति प्राचीन हैं। परंतु यह सच नहीं है। असल में यह जाति है जो स्तुति करने से अधिक वंशक्रम रखती है और उसे अपने आश्रयदाताओं को सुनाती है। कहते हैं, चारण तो कच्छ में ही हैं पर भाट सर्वत्र पाए जाते हैं, विशेषकर जोधपुर, बीकानेर, शेखाबाटी आदि में भाटों का पर्याप्त प्रभाव है, मालवा में भी भाट अधिक हैं। ये बातें सही हो सकती हैं, परंतु ये सब भाट वे नहीं है जिनका काम साहित्यसृजन रहा है। चारण तो केवल राजपूतों के ही दानपात्र होते हैं, पर भाट सब जातियों से दान लेते हैं। ऐसी स्थिति में भाटों की जातियाँ राजस्थान में सैकड़ों हैं। यद्यपि भाटों में कुछ अच्छे कवि हो गए हैं, पर सभी भाट कवि नहीं हैं। राजस्थान में प्रत्येक जाति के अपने भाट मिल जाएँगे। भाटों के संबंध में बड़ी विचित्र बातें उपलब्ध होती हैं। एक दोहा उनके अंतर को स्पष्ट करने में पर्याप्त हैं :
भाट टाट अन मेडरी हर काहू के होय।
पर चारण बारण मानसी जे गढपतियों के होय।।
चारणों के भी भाट होते हैं। रामासरी तहसील साजत में चारणों के भाट चतुर्भुज जी थे। हरिदान अब भी चारणों के भाट हैं। भाटों के संबंध में एक कथा प्रचलित है। जोधपुर के महाराज मानसिंह महाराज अहमदनगर (ईडर) से तख्तसिंह को गोद लाए। तख्तसिंह के साथ एक भाट आया जिसका नाम बाघाजी भाट था। यहाँ लाकर चारणों को नीचा दिखाने के लिये उसे कविवर की पदवी दी। दो गावँ भी दिए। परंतु बाघा को कविता के नाम पर कुछ भी नहीं आता था। आजकल उसी बाघा के लिये राजस्थान में यह छप्पय बड़ा प्रचलित है :
जिण बाघे घर जलमगीत छावलियाँ गाया।
जिण बाघे घर जलम थरों घर चंग घुराया।।
जिण बाघे घर जलम लदी बालम लूणाँ री।
जिण बाघे घर जलम गुँथी तापड़ गूणां री।।
बेला केइ बणबास देओ सारा ही हूनर साझिया।
गत राम तणी देखो गजब बाघा कविवर बाजिया।।
इस तरह इस छप्पय में बालदिया चंग बजानेवाले, छावलियाँ गानेवाले, तापड़ों की गूण गूँथनेवाले, बिणजोर, बासदेव के स्वाँग लानेवाले, काबडिया, तथा कूगरिया (मुसलमान), आदि अनेक भाट पेशों के अनुकूल भाट बने हुए हैं। डिंगल साहित्य में चारणों की भाँति कोई भी गीत या छंद भाटों द्वारा लिखा हुआ नहीं मिलता, ऐसी स्थिति में भाटों का नाम चारणों के साथ कैसे लिया जाने लगा, यह समझ में नहीं आता। निश्चित रूप से यह चारण जाति को उपेक्षित करने लिये किसी चारणविरोधी का कार्य रहा होगा। अन्यथा वंशावलियाँ पढ़कर भीख माँगनेवाले प्रत्येक पेशा और व्यापार करनेवाले सैकड़ों प्रकार की जातियों के विविध भाटों की क्या चारणों से समता हो सकती हैं ?
कविराज राव रघुबरप्रसाद द्वारा लिखित और प्रकाशित भट्टाख्यानम् नामक छोटी सी पुस्तक में कवि ने खींचतानी से प्रमाण जुटाकर यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि भाट शब्द ब्रह्मभट्ट से बना है, उसे ब्रह्मराव भी कहा गया है। भट्ट जाति की उत्पत्ति का प्रतीक पुरुष ब्रह्मराव था जिसे ब्रह्मा ने यज्ञकुंड से उत्पन्न किया था। भाट स्वयं को कभी सूत, मागध और वंदीजन कहकर अपने को सरस्वतीपुत्र कहने लगते हैं और कभी अग्निकुंड से उद्भूत बताते हैं।
भाट लोग भाटों और ब्राह्मणों में कोई अंतर नहीं मानते, परंतु यह बात अवैज्ञानिक लगती है। यों भी ब्राह्मण भाट की उत्पति एक होने का कोई तुक नहीं।उनका यह भी कहना है कि वे राव हैं। परंतु चारण राव की भाँति भाट राव आज तक कहीं उपलब्ध नहीं होते। हाँ, बोलचाल में आज भी राजस्थान में भटैती तथा भटैती शब्द बड़े प्रचलित हैं। मेवाड़ में तो भटैती पंचायत करने को भी कहते हैं और भटैत पंच को। साथ ही जो आदमी बही पढ़ता है वह भी भटैत कहलाता है। लगता है, भटैती करनेवालों का नाम इसी कारण भाट हो गया होगा। आगे चलकर भाटों ने चारणों में अपने कर्तव्य के प्रति शिथिलता देखी तो उन्होंने कविकर्म प्रारंभ कर दिया होगा। यों भी भाटों में कुछ कवि अच्छे हुए हैं। इसलिये चारणों के साथ साथ भाटों का भी नाम लिया जाने लगा है। अन्यथा साहित्य के क्षेत्र में जैसा योगदान चारणों का है वैसा भाटों का नहीं।
पूर्वोत्तर भारत के भाट कट्टर हिंदू है। वे वैष्णव शाक्त हैं। शिव की पूजा वे गौरीपति के रूप में करते हैं। बड़े वीर, महावीर और शारदा इनके देवता हैं। इनमें भवानी या देवी की भी पूजा प्रचलित है। उत्तरप्रदेश के पूर्वी जिलों में मुस्लिम धर्मावलंबी भाट भी पाए जाते हैं। कहा जाता है, ये शहाबुद्दीन गोरी के समय में मुसलमान बना लिए गए थे। इनमें प्रचलित रीति रिवाजों पर हिंदू रीतियों की पूरी छाप है। इनकी कुछ जातियाँ पद्यगीत बनाकर भीख माँगती है। बिहार में उनकी सामाजिक धार्मिक स्थिति सामान्य हिंदुओं से किंचित् भिन्न और निम्न है। पूर्वी बंगाल के भाट अधिकांशत: शक्तिपूजक हैं।
आप ने जो भी लिख है राव समाज के बारे में उसमे से अधिकांश गलत है आप को राव समाज के पते में जानकारी नही है
ReplyDeleteमेरे आप से आग्रह है कि आप ये पोस्ट हटा दी
हमें कितना भी निचा दिखाने कि कोशिश कर लो जब राव दरबार में जाते तो महाराजा भी खड़े हो जाते आज भी होते हैं
ReplyDeleteआप घृणा से आहत होकर
ReplyDeleteबकवास कर रहे हो।
मैं भी बहुत सी बातें लिख सकता हूं,
पर मैं सामाजिक ताने बाने की रक्षा के हित
ओछी टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं समझता हूं
भीनमाल में केवल आप राव (राव जागीरदार, शासनिक राव)
बोल देना, आपको पता चल जाएगा। कि राव कैसे होते हैं।
महीपाल सिंह राव (अध्यापक)
ठिकाना भीनमाल।
Gadhvi aur Charan pehle se bairy hai Rao samaj k
Deleteमहिपाल सा सादर जय माताजी री....राव और चारण शब्द से बहुत लोगों को पूर्वा ग्रह हैं।।इस प्रकार के लेखों की इंटरनेट पर भरमार हैं जो हमें नीचा दिखाने के लिए उद्ध्यत रहते हैं।।।चारण जागीरदारों की मान्यता अपनी जगह हैं और राव जागीरदारों की अपनी जगह हैं।।
Deleteदोनों समाज एक दूसरे की पूरक रही हैं।।
हालांकि भाट शब्द से चारण और ब्रह्म भट्ट शब्द क्यों जोड़ा जाता रहा हैं आज तक समझ से परे हैं।।।
तख्त सिंह जी के समय एक बात और हुई थी जो आप लिखना भूल गए श्री मान महान चारण साहब के
ReplyDeleteतुम इमली की पात हो, हम केले की पात।।
राव की बराबरी करे, क्या चारण की जात।।
क्या इतिहास है मैं आपको बताता हूं
महाराज श्री राम के पास सुमंत थे
महाराज श्री कृष्ण के समय संजय थे
महाराव पिंजल के पुत्र पिंगल
पृथ्वी राज चौहान के पास चंद्रवरदाई
भगवान देवनारायण के पास छोछु जी राव
अकबर के पास बीरबल
झांसी की रानी लक्ष्मी बाई
छत्रपति शिवाजी के पास बाजीराव भलाड़
मेवाड़ शिरमोड कवि मोहन सिंह जी
क्यूं चारण कहा गए थे उस समय....?
किसी के बारे में गलत लिखने से पहले सोच लिया करे कृपया
राव रणवीर सिंह चौहान
जय श्री राम🚩🚩🙏
Deleteजय माँ सरस्वति🚩🙏
बिल्कुल सही कहा आपने भाई जी
बहुत सी बातें जो चारण बंधुओं के अनुकूल नहीं है,
ReplyDeleteमैं लिखने में सक्षम हूं, क्योंकि माता सरस्वती की अनुकंपा
हैं, मुझे पर।
किंतु सामाजिक सौहार्द की रक्षा के हित में कटु छंद लिखने
में असमर्थ हूं।
वैसे चारण बंधु भी भीनमाल के राव जागीरदारों से अच्छी तरह परिचित हैं।
चारण देवी पुत्र हैं समय समय पर माँ भगवती इस चारण कुल में जन्म लेती है, जय माँ आवड़ करणी।
ReplyDeleteमेरा परिवार चारण समाज का व्यक्ति आने पर जगह छोड़ खड़ा होता ह पर भाट के लिए कभी नही
Deleteचारण समाज निस्संदेह कवि कर्म में निपुण हैं,अपनी प्रतिभा के बल पर शासकीय सेवा में अधिकारी गणों के गरिमामय दायित्वों को संभाल कर राष्ट्र सेवा में उद्धत है।
ReplyDeleteकिंतु शासनिक राव भी साहित्य सेवा में अविस्मरणीय योगदान देते रहे हैं, महाकवि चंद वरदाई,कवि गंग,कवि वैताल ,शिवाजी महाराज के राज कवि भूषण, महाराणा प्रताप के राजकवि पानिप,राव मोहनसिंह उदयपुर आदि प्रातः स्मरणीय कविराज है।
नरहरिदास जी जिन पर भी अतिक्रमण किया गया पर वे भी शासनिक राव थे, जिन्होंने गौ हत्या पर रोक लगवाने हेतु अकबर को समझाया और गौ हत्या पर रोक लगायी।
मुझे ये भी अफसोस है कि देवी पुत्र होते हुए भी कवि समाज पर द्वेष और झूठे दंभ के वशीभूत असभ्य टिप्पणियां ,देवीपुत्र समाज के अनुकूल तो है ही नहीं अपितु मानवता व सभ्य समाज का भी अपमान है।
अन्यान्य प्रतिकूल टिप्पणियों का मैं आकर हूं, पर सभ्यता और राष्ट्रीय एकता के सूत्र ने मेरे हाथ बांधे रखे हैं।
मैं कविराज सूर्यमल्ल मीसण,दुरसा आढा और ठाकुर केसरी सिंह जी बारहठ का बहुत सम्मान करता हूं।
उन्हीं के प्रति श्रृद्धा के कारण मैं साहित्य के उद्धरणों के माध्यम से भी प्रतिकूल टिप्पणियां नहीं करुंगा।
महीपाल सिंह राव भीनमाल (अध्यापक)
मुझे तो यह समझ में नहीं आता कि राव कौन हैं
Deleteबघाजी भाट का नही करते क्या आप सम्मान ?
ReplyDeleteदेवी पुत्रो के ललाट पर ही तेज ताकत विश्वाश
ReplyDeleteदृढ़ता दिखाई देती ह वो एक याचक भाट के कभी दिखाई नही देगी 🙏
जय माँ करणी
जिस बघाजी भाट की आप बात कर रहे है वह असलमे ब्रह्मभट्ट है।और गुजरात में ब्रह्मभट्ट बहुत ही उच्च जाति है जिसे भाट से कोई संबंध नहीं है यह ध्यान रखें।और किसी समाज की बात लिखने से पहले उसके बारे में पूरा ज्ञान ले ले
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